मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

पृथ्वी मुस्कुराने नहीं सिसकने पर मजबूर

लेखक परिचय

निर्भय कर्ण

निर्भय कर्ण

स्वतंत्र लेखक व् टिप्पणीकार
earth
जब बारिश की बूंदें धरती/पृथ्वी पर पड़ती हैं तो हमारा रोम-रोम पुलकित हो जाता है, पृथ्वी खुशी से मुस्कराने लगती है और ईश्वर का धन्यवाद करती है लेकिन वर्तमान हालात ने पृथ्वी को मुस्कुराने पर नहीं बल्कि सिसकने पर मजबूर कर दिया है। वजह साफ है सजीवों को जीवन प्रदान व पोषित करनेवाली अनोखी और सुन्दर पृथ्वी को चारों ओर से क्षति पहुंचाने का कार्य चरम पर है जो प्राकृतिक आपदा के लिए प्रमुख कारक है। मानव यह भूलता जा रहा है कि पृथ्वी हमसे नहीं बल्कि पृथ्वी से हम हैं यानि कि यदि पृथ्वी का अस्तित्व है तो हमारा अस्तित्व है अन्यथा हमारा कोई मूल्य नहीं। लेकिन यह बात मानव मन-मस्तिष्क से निकाल व नजरअंदाज कर भारी गलती कर रहा है और इसका नतीजा मानव भुगत भी रहा है। दुनियाभर में प्रदूषण से लगभग 21 लाख लोग हर साल मौत की गोद में समा जाते हैं, यह जानते हुए भी हम पृथ्वी के अस्तित्व से खिलवाड़ करने पर लगातार उतारू हैं !
कुल मिलाकर पृथ्वी को मुख्यतः चार चीजों से खतरा है। पहला है ग्लोबल वार्मिंग। विशेषज्ञ यह आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग ने मौसम को और भी मारक बना दिया है और आनेवाले वर्षों में मौसम में अहम बदलाव होने की पूरी संभावना है, चक्रवात, लू, अतिवृष्टि और सूखे जैसी आपदाएं आम हो जाएंगी। धरती पर विद्यमान ग्लेशियर से पृथ्वी का तापमान संतुलित रहता है लेकिन बदलते परिवेश ने इसे असंतुलित कर दिया है। तापमान में बढ़ोतरी का अंदाजा वर्ष दर वर्ष हम सहज ही महसूस करते हैं। कुछ दशक पहले अत्यधिक गर्मी पड़ने पर भी 38 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान हुआ करता था लेकिन अब यह 50 से 55 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है। लगातार बढ़ते तापमान से ग्लेशियर पिघलने लगा है और वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी को जल प्रलय अपने आगोश में ले लेगा। संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि धरती के बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु के लिए कोई प्राकृतिक कारण नहीं बल्कि इंसान की गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। इसलिए अभी भी वक्त है कि हम समय रहते संभल जाएं।

बढ़ते तापमान से न केवल जलवायु परिवर्तन होने लगा है बल्कि पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगी है जिससे कई बीमारियों का बोलबाला होता जा रहा है और इसका मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैस, बढ़ती मानवीय गतिविधियां और लगातार कट रहे जंगल। पेड़ों की अंधाधुध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है। यदि भारत की ही बात करें तो यहां पिछले नौ सालों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गए जबकि यहां पर कुल वन क्षेत्रफल 6,90,899 वर्ग किलोमीटर है। वन न केवल पृथ्वी पर मिट्टी की पकड़ बनाए रखता है बल्कि बाढ़ को भी रोकता और मृदा को उपजाऊ बनाए रखता है। साथ ही, वन ही ऐसा अनमोल चीज है जो बारिष कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर हमें पानी उपलब्ध कराता है। धरती पर पानी की उपलब्धता की बात करें तो धरती पर 1.40 अरब घन किलोमीटर पानी है। इसमें से 97.5 फीसदी खारा पानी समुद्र में है, 1.5 फीसदी पानी बर्फ के रूप में है। इसमें से ज्यादा ध्रुवों एवं ग्लेशियरों में है लोगों की पहुंच से दूर है। बाकी एक फीसदी पानी ही नदियों, तालाबों एवं झीलों में है जहां मनुष्य की पहुंच तथा पीने योग्य है। लेकिन इस पानी का भी एक बड़ा भाग जो 60-65 फीसदी तक है खेती और औद्योगिक क्रियाकलापों पर खर्च हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड वॉटर डेवलेपमेंट रिपोर्ट ‘2014’ के मुताबिक, 20 प्रतिशत भूमिगत जल खत्म हो चुका है और 2050 तक इसकी मांग में 55 प्रतिशत तक इजाफा होने की संभावना है। पानी संकट का मुख्य कारण इसकी बर्बादी ही है। आंकड़ों पर गौर करें तो 60 प्रतिशत तक पानी इस्तेमाल से पहले ही बर्बाद हो जाता है।
दूसरा है ओजोन परत में छिद्र। सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों से ओजोन की छतरी हमें बचाती है लेकिन मानवीय गतिविधियां एवं प्रदूशण ने इसमें लगातार छिद्र होने पर मजबूर कर दिया है। इस महत्वपूर्ण परत में छिद्र का आकार लगातार बढ़ता ही जा रहा है जो भयंकर विनाश की ओर इशारा करती है। देखा जाए तो, ओजोन क्षरण के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस और खेती में इस्तेमाल किया जाने वाला पेस्टीसाइड मेथिल ब्रोमाइड जिम्मेदार है। रेफ्रीजरेटर से लेकर एयरकंडीशनर तक क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस का उत्सर्जन करते हैं और इन उपकरणों के प्रचलन में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। बढ़ते प्रदूषण ने लोगों का सांस लेना दूभर कर दिया है। येल यूनिवर्सिटी के ग्लोबल इनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स (ईपीआई) ‘2014’ के मुताबिक, दमघोंटू देश में जहां भारत 155वें स्थान पर है वहीं नेपाल 139वें स्थान पर।
तीसरा है प्राकृतिक संसाधनों का दोहन। धरती का गर्भ दिन-प्रति-दिन खोखला होता जा रहा है जिसका मुख्य कारण है खनिज पदार्थों का दोहन, प्राकृतिक संपदाओं की तलाश आदि। विषेशज्ञ इस बात की आशंका का व्यक्त कर रहे हैं कि धरती का ऊपरी परत का आवरण कमजोर पड़ता जा रहा है जिससे धरती बिखर सकती है। खदानों और बोरवेल के दौर में पहाड़, नदी, पेड़ और जंगल लगभग समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं।
चौथा है परमाणु युद्ध। पूरी दुनिया में तेजी से आगे बढ़ने की दौड़ की जद्दोजहद में देशों के बीच शत्रुता और वैमनस्यता अपना स्थान बना रही है। ऐसे हालात में परमाणु युद्ध होने का खतरा भी सबसे ज्यादा बना रहना स्वाभाविक है। इसी वजह से सभी देश परमाणु बम बनाने की जुगत में रहते हैं और कई दर्जन देश इसे हासिल भी कर चुके हैं। आज विश्व में इतने परमाणु बम हैं कि लगभग 1000 बार धरती को नष्ट किया जा सकता है। जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम इस्तेमाल करने के परिणामों से इन बमों की विध्वंसक शक्ति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
हमें हर हाल में अपनी जीवनदायिनी पृथ्वी को बचाना होगा। पर्यावरण संतुलन के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधों को लगाना, उनकी देखभाल करना सभी को अपना कर्त्तव्य मानना होगा। पर्यावरण को बचाने की दिशा में ऊर्जा संरक्षण पर बल देना, वैश्विक ताप के निवारक उपायों में गैसों के उत्सर्जन पर भारी कटौती के साथ-साथ प्रभावकारी उपायों पर गंभीर चिंतन करना, घरों से निकलने वाला मलमूत्र और कूड़ा फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी से ज्यादा प्रदूषण के पूर्ण निस्तारण पर काम करना, इको फ्रेंडली विकास पर जोर देना होगा। बायो गैस के साथ-साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को अधिक से अधिक करना आज की जरूरत बन गयी है जिससे कि सीमित प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव को कम किया जा सके। इसके साथ ही हमें दुनिया की बढ़ती आबादी को नियंत्रण करने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।

रविवार, 5 अप्रैल 2015

हाथी के दांत: दिखने के और, खाने के और

देश की संसद और विधान सभाओं में हमारे जन प्रतिनिधि संयत और मर्यादित आचरण नहीं करते. राजनीतिक पार्टियां रणनीति बनाकर संसद और विधानसभा में हो-हल्ला करती हैं और कामकाज नहीं चलने देतीं. पार्टी नेतृत्व भी ऐसे नेताओं की चुनावी उपयोगिता देखता है, उनका आचरण नहीं. मसलन गिरिराज सिंह बिहार के भूमिहारों के प्रभावशाली नेता हैं. आने वाले विधानसभा चुनाव में वे बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं. साध्वी निरंजन ज्योति भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ज़रूरत पड़ने पर बहुत काम की सिद्ध होंगी. इसलिए नेतृत्व ऐसे तत्वों को सजा देने की बजाय शह देता है. यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. भारत में लोकतंत्र के भविष्य के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.
बिहार से भारतीय जनता पार्टी के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जब कहते हैं कि अगर राजीव गांधी गोरी चमड़ी वाली सोनिया गांधी के बजाय काली चमड़ी वाली किसी नाइजीरियन महिला से शादी करते तो भी क्या कांग्रेस पार्टी उस महिला को अपना नेता स्वीकार करती? गिरिराज सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ रंगभेदी बयान पर नाराज़गी तो जताई जा सकती है लेकिन यह कोई हैरत की या नई बात नहीं है. गत वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान हाजीपुर में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए भी सिंह ने एक बयान दिया था कि नरेंद्र मोदी के विरोधियों के लिए भारत में कोई जगह नहीं है और उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए. तब मंच पर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी भी बैठे थे. लेकिन गडकरी ने उनके बयान की आलोचना में एक शब्द भी नहीं कहा. आश्चर्य की बात यह है कि पार्टी नेतृत्व ने कभी भी इस तरह के बयानों की खुलकर आलोचना नहीं की. अब इस नए बयान पर पार्टी सूत्रों के हवाले से ही खबर है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने गिरिराज सिंह से फोन पर कहा है कि वह अपने बयान के लिए खेद प्रकट करें लेकिन पार्टी की ओर से स्पष्तः उनकी कोई आलोचना या निंदा नहीं की गई. पिछले साल भी मीडिया में पार्टी सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने फोन पर गिरिराज सिंह को ऐसे बयान न देने के लिए कहा है. लेकिन गिरिराज सिंह पर इस समझाइस का असर नहीं हुआ.
असलियत तो यह है कि भाजपा ने ऐसे नेताओं को दंडित करने के बजाय पुरस्कृत ही किया है. लोकसभा चुनाव के बाद गिरिराज सिंह को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल करके उन्हें इसका पुरस्कार दिया गया. पहली बार केंद्र में मंत्री बने गिरिराज ने केजरीवाल की तुलना राक्षस मारीच से कर दी और प्रधानमंत्री को राम कहा. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले एक और केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का रामजादा वाला बयान काफ़ी विवादित हुआ था. लेकिन इस बयान के बाद भी उनके खिलाफ किसी किस्म की कार्रवाई नहीं हुई. कुछ दिनों पहले बीजेपी नेता और सांसद साक्षी महाराज ने अपने एक विवादित बयान में कहा था कि हर हिंदू चार संतान पैदा करे. विपक्ष ने इन बयानों को बड़ा मुद्दा बनाकर संसद में जोरदार हंगामा किया. यहां तक कि इन बयानों को लेकर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भी सवाल खड़े कर दिये गये. भाजपा नेताओं को अपने बयानों को लेकर संसद में माफी मांगनी पड़ी. लेकिन यह सिलसिला रुका नहीं, भाजपा के आनुषंगिक संगठनों के नेता इसे और हवा देते रहे. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की नेता साध्वी प्राची द्वारा गत एक फरवरी को बदायूं में आयोजित हिन्दू सम्मेलन में दिए गए बयान में कहा गया कि हिंदू महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करना चाहिए। प्राची ने कहा कि एक बच्चे से देश की रक्षा नहीं हो सकती है, इसलिए चार बच्चे पैदा करो. एक ही क्‍यों कम से कम चार बच्‍चे पैदा करें। प्राची ने कहा कि हम कहते हैं कि हम दो हमारे दो, लेकिन भाइयों और बहनों अब हमें चार-चार बच्चे चाहिए। कहा जाता है कि शेर का एक बच्चा-यह जो बात कही जा रही है वह गलत है। एक शेर के एक बच्चे को हम सीमा पर लड़ने के लिए भेज देंगे तो क्या होगा? पाकिस्तान वहां पर खून-खराबा कर रहा है, इसलिए चार-चार बच्चे पैदा करो। उन्होंने कहा कि एक बच्चे को देश की सीमा की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेजो। एक बच्चे को संतों को सौंप दो, एक बच्‍चे को समाज के लिए दो जोकि समाज के काम आए और एक बच्चे को संस्कृति की रक्षा करने के लिए वीएचपी को दे दो। उन्‍होंने कहा कि सरकार तो अच्छी बन गई लेकिन परिवर्तन होना चाहिए।
परिवर्तन सरकारों से नहीं संस्कारों से होगा। गिरिराज किशोर और प्रवीण तोगड़िया को तो इस तरह के बयानों में पूरी महारत हाशिल है ही. हाल ही में वीएचपी नेता तोगड़िया ने गुजरात के भावनगर में यह बयान दिया कि भारत में रहने वाले तमाम मुस्लिम और ईसाई हिंदुओं के वंशज हैं. विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेता प्रवीण तोगड़िया वर्षों से मुस्लिम-विरोधी भड़काऊ बयान दे रहे हैं. लेकिन किसी पर भी अंकुश लगाने की कहीं कोई कोशिश नज़र आती नहीं दिखती. साधु-साध्वियां जिन्हें हिंदू मान्यताओं, ग्रंथों और पारंपरिक भावनाओं के अनुसार यह समझा जाता था कि वे माया-मोह और लोभ-लाभ से दूर रह कर भौतिक सुख-सुविधाओं का परित्याग कर संसारी जनों को अपने कर्म सुधारने को प्रेरित किया करते थे, अब स्वयं बेहद संसारी और सत्ता प्रेमी हो चुके हैं. इसीलिए इलाहाबाद में माघ मेले में शिरकत कर रहे उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा है कि नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए हिन्दुओं को दस-दस बच्चे पैदा करने चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदुओं की एकता की वजह से ही मोदी प्रधानमंत्री बने हैं। वह आने वाले समय में भी बहुमत में रहें, इसके लिए हिंदू परिवारों को 10 बच्चे पैदा करने होंगे।
बयानों के इस दौर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सुब्रमण्यम स्वामी कैसे पीछे रहते। सुब्रमण्यम स्वामी ने बयान दिया कि मस्जिद धार्मिक स्थल नहीं है सिर्फ इमारत है, इसलिए उसे कभी भी तोड़ा जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा, सभी भारतीय मुसलमान पहले हिंदू थे. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने गुवाहाटी में शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान यह बात कही. सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने बयान के पक्ष में तर्क देते हुए सऊदी अरब का एक उदाहरण पेश किया। उन्होंने कहा कि वहां सड़कें बनाने के लिए मस्जिदों को तोड़ा जाता है. इसके साथ ही उन्होंने कहा, अगर कोई मेरे राय से इत्‍तेफाक नहीं रखता, तो मैं इस मुद्दे पर उसके साथ बहस करने को तैयार हूं.
खैर सांप्रदायिक राजनीति तो भाजपा की रगों में दौड़ती है लेकिन अब सुनिए कुछ स्वास्थ्य संबंधी उपदेश। इलाहाबाद से बीजेपी सांसद श्याम चरण गुप्ता ने तम्बाकू से कैंसर के बारे में कहा, ‘मैं आपके सामने ऐसे कई लोगों को पेश कर सकता हूं, जो खूब बीड़ी पीते हैं और उन्हें अब तक कोई बीमारी नहीं हुई, कैंसर भी नहीं हुआ.’ उन्होंने यह भी कह दिया कि चीनी, चावल, आलू खाने से आपको डायबिटीज हो जाती है, तो इन सारी चीजों के लिए भी आप चेतावनी क्यों नहीं लिखते? इससे पहले दिलीप गांधी ने कहा था कि तंबाकू से कैंसर होने संबंधी सभी अध्ययन विदेशों में हुए हैं और किसी को भारतीय परिप्रेक्ष्य को भी ध्यान में रखना चाहिए. गांधी ने कहा, ‘तंबाकू के हानिकारक प्रभावों पर सभी एकमत हैं. यह साबित करने वाली कोई भारतीय रिसर्च नहीं है कि तंबाकू के सेवन से कैंसर होता है. कैंसर सिर्फ तंबाकू के कारण नहीं होता है.
अब दिलीप गांधी का एक और जानकारी भरा बयान सामने आया. एक टीवी चैनल की खबर के मुताबिक, गांधी ने बयान दिया कि तंबाकू असल में हाजमे में मददगार होता है. ध्यातव्य है गांधी तंबाकू और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003’ के प्रावधानों के परीक्षण के लिए गठित एक संसदीय समिति के प्रमुख हैं. ऐसा नहीं है कि विवादित बयान सिर्फ भाजपाई और उनके सहयोगी ही देते हैं उनके अलावा कांग्रेस, सपा, जदयू, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सभी दलों के नेता अनाप-शनाप बोलते रहते हैं. दूसरी पार्टियों का हाल भी बहुत बेहतर नहीं है. पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को धमकी दी थी. उन्होंंने कहा था कि यदि उन्होंने या उनके साथियों ने वहां दंगे भड़काए तो वह उनकी ‘बोटी-बोटी कर देंगे’. हैदराबाद के ओबैसी बंधू और समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान और अबू आज़मी भी भड़काऊ और विवादास्पद बयान देने के लिए कुख्यात हैं. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने अपने समर्थकों से मार्क्सवादियों के बारे में एक बेहद उत्तेजक बयान दिया था.
अभी कुछ ही दिनों पहले जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने पहले दक्षिण भारतीय महिलाओं के शरीर सौष्ठव पर अपनी राय पेश की, आश्चर्य यह कि इस पर सभी सांसद मुस्करा रहे थे. फिर उन्होंने भाजपा की महिला मंत्री स्मृति ईरानी के विषय में आपत्तिजनक टिप्पणी कर डाली, कुछ दिनों हो हल्ला हुआ और मामला धीरे-धीरे शांत हो गया. ये नेता यहीं नहीं रुकते हैं, बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी ये अपनी गैरजिम्मेदार टिप्पणियां करने से बाज नहीं आते. कुछ समय पूर्व हरियाणा में गैंगरेप की बढ़ती वारदातों पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्‍ता ने एक बेहद विवादित और गैर जिम्‍मेदाराना बयान दे डाला उन्‍होंने कह दिया कि 90 फीसदी लड़कियां सहमति से शारीरिक संबंध बनाती हैं। जब लड़कियां किसी के साथ जाती हैं तो उन्‍हें मालूम नहीं होता कि वह गैंगरेप की शिकार हो जाएंगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव और विदेशी सोच को जिम्मेदार ठहरा दिया था। उन्होंने कहा कि रेप ‘इंडिया’ में होते हैं ‘भारत’ में नहीं। इससे पहले भी कई बड़े लोग दिल्ली गैंगरेप और महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मसलों पर बेतुके और विवादित बयान दे चुके हैं. विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार अशोक सिंघल ने बयान में कहा था कि महिलाओं का पाश्चात्य रहन-सहन दुष्कर्म सहित हर तरह के यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार है. मध्य प्रदेश में भाजपा के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तो और एक कदम आगे निकले। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि सीताजी (महिलाएं) ने लक्ष्मण रेखा पार की, तो रावण उनका हरण कर लेगा। इसलिए महिलाओं को अपनी मर्यादा के भीतर ही रहना चाहिए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र और सांसद अभिजीत मुखर्जी ने दिल्ली गैंगरेप के विरोध में हो रहे विरोध प्रदर्शन पर कहा था कि रेप के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करने वाली महिलाएं डिस्को में जाने वाली होती है। जिन्हें हकीकत मालूम नहीं होती, वह केवल कैंडल मार्च पर उतर आती है। हालांकि बाद में राष्ट्रपति की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने भाई के बयान पर असहमति जताते हुए कहा था कि यह बयान महिलाओं का अपमान है और उन्हें तुरंत ये वापस लेना चाहिए। एक नाबालिग लड़की का यौनशोषण करने वाले दुराचारी बाबा आसाराम ने कहा था कि अकेली महिला रात को घर से निकलती है तो उसे भाई को साथ लेकर निकलना चाहिए।
आसाराम ने कथित रूप से टिप्पणी की कि पीड़िता को आरोपियों को ‘भाई’ कहकर संबोधित करना चाहिए था। उन्होंने यहां तक कह डाला कि अगर हिम्मत नहीं थी आत्मसमर्पण क्यों नहीं कर दिया। सार्वजनिक संवाद का यह स्तर और राजनीतिक पार्टियों की चुप्पी भारतीय लोकतंत्र में आई गिरावट का सबूत है. प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अपनी इस फिक्र का जिक्र तो करते हैं लेकिन कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं। यह जनमानस में संदेह पैदा करता है। क्या वास्तव में वे इसके लिए प्रतिबद्ध हैं ? अब तक ऐसा लगता तो कतई नहीं है. शायद हाथी के दांत खाने के और व दिखाने के और हैं. जनमानस निराश है, उद्वेलित है. वह कानूनविदों को आदर्श के रूप में देखता है. इन कर्मों का उसके ऊपर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसे विवादित और अमर्यादित बयानों पर रोक लगाने के लिए देश के कानूनविदों , बुद्धजीवियों ,विधि आयोग समेत सभी दलों को इस बात पर गम्भीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है. वर्ना ऐसे बयानों की अटूट श्रंखला यूँ ही चलती रहेगी और इससे उपजे तू-तू मै-मै से देश का विकास कैसे होगा यह तो मोदी जी ही बताएंगे लेकिन यह तय है, पूरे विश्व में जहां वह भारत की मजबूती का परिचय देने की कोशिश कर रहे हैं वहीँ इन गैर जिम्मेदार बयानों से देश की छवि अवश्य धूमिल होती जा रही है.

–शैलेन्द्र चौहान