नरेंद्र मोदी की इस जीत ने ढेर सारे प्रतिमान बनाए हैं, ध्वस्त किए हैं। और ये सिर्फ नरेंद्र मोदी ही कर सकते थे। सब चौंक रहे हैं, चिंहुक रहे हैं। मुझे भी उत्तर प्रदेश में 50 सीटें और पूरे देश में बीजेपी को 240 सीटों से ज्यादा मिलने का अंदाजा नहीं था। हालांकि, नरेंद्र मोदी ने जो 18-25 और 25-40 साल के नौजवानों को जाकर पकड़ा था उसकी व्याख्या मैं पहले से कर रहा था। उसे अच्छे से समझ रहा था। मुझे पता था कि नरेंद्र मोदी ने 18-25 साल के मौके की तलाश में परेशान नौजवान को ये सपना दिखा दिया है कि मौका तो अब नरेंद्र मोदी ही उन्हें दे सकते हैं। यानी अच्छे दिन तो तभी आएंगे जब मोदी सरकार होंगे। और, उससे भी ज्यादा सलीके से उन्होंने 25-40 वाले नौजवानों को ये समझाया कि यूपीए की सरकार ने जो आपके मौके को छीन लिया है आपकी जेब में आने वाली रकम में कटौती कर दी है, आपकी तरक्की की रफ्तार धीमी कर दी है। वो सब मैं ठीक कर दूंगा। कमाल की बात तो ये है कि हिंदु-मुस्लिम की बात करने वाल इस देश के नेताओं को ये बात तब भी समझ में नहीं आई जब राम मंदिर पर फैसले के बाद भी देश में कहीं से भी उन्मादी स्वर नहीं दिखाई दिए। मामला ऐसा पलट गया था कि उसे अपनी तरक्की की चिंता सबसे पहले होने लगी थी। और उस चिंता को बेहद संतुलित तरीके से नरेंद्र मोदी ने उन्माद में बदल दिया। नरेंद्र मोदी ने मौज मस्ती के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करने वाले नौजवानों को उनके अड्डे पर जाकर सबसे पहले पकड़ा और बताना शुरू किया कि कैसे तुम्हारे मौज मस्ती के दिन धीरे-धीरे घटते जाएंगे और इसके लिए जिम्मेदारी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार है।
नरेंद्र मोदी ने इस उन्माद को किस तरह से वोटों में बदल दिया इसका अंदाजा लगाइए। नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को पूरे देश में सत्रह करोड़ से ज्यादा मत मिले हैं। ये कुल पड़े मतों के इकतीस प्रतिशत से ज्यादा है। और जिस दिन भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी तो मेरे साथ पैनल डिस्कशन में बैठे कांग्रेस एक प्रवक्ता कह रहे थे कि आप लोग एकदम से मोदी-मोदी करने लगे हैं। जबकि, कांग्रेस को सीटें भले ही विपक्षी पार्टी का ओहदा पाने लायक भी न मिली हो। लेकिन, कांग्रेस को 22 प्रतिशत मत मिले हैं और भारतीय जनता पार्टी को करीब 32 प्रतिशत। टीवी की उस बहस तक मतगणना जारी थी। अंतिम परिणाम आने के बाद स्थिति ये रही कि कांग्रेस को कुल 19 प्रतिशत से ही कुछ ज्यादा मत मिले। इस प्रतिशत को मतों में बदलें तो ये साढ़े दस करोड़ से ज्यादा होता है। नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से व्यवस्था से भन्नाए नए-पुराने मतदाताओं के उन्माद को मत में बदला है। उससे क्या हुआ। उसके एक परिणाम के बारे में जरा गंभीरता से सोचिए। अब इस देश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं रही। भारतीय जनता पार्टी इकतीस प्रतिशत मतों के साथ और कांग्रेस उन्नीस प्रतिशत से कुछ ज्यादा मतों के साथ। इसके ठीक बाद जो पार्टी है वो है बहुजन समाज पार्टी। मायावती वाली पार्टी, जिसके बारे में कहा जाता था कि कुछ भी हो जाए मोदी की आंधी में हाथी मजे से खड़ा रहेगा। हुआ क्या। देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का कोई सांसद लोकसभा में नहीं है। मायावती की पार्टी को मत भी सिर्फ चार प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही मिले हैं। जबकि, किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए कम से कम छे प्रतिशत मत और चार सांसद होने चाहिए। इस पैमाने पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा कोई भी राष्ट्रीय पार्टी की दर्जा हासिल नहीं कर सकेंगी। ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (3.8), मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी (3.4), जयललिता की पार्टी (3.3) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (3.2) को चार प्रतिशत से भी कम मत मिले हैं।
जिस भारतीय जनता पार्टी को कहा जाता था कि वो पूरे देश की पार्टी कभी हो ही नहीं सकती। किसी को शायद ही ये कल्पना हो कि जम्मू कश्मीर की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी है। जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी को करीब साढ़े बत्तीस प्रतिशत मत मिले हैं और ये दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से दस प्रतिशत ज्यादा हैं। उसे अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में भी छियालीस प्रतिशत से ज्यादा मत मिले हैं। जो कांग्रेस से पांच प्रतिशत ज्यादा हैं। असम में भी भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा साढ़े प्रतिशत से भी ज्यादा मत मिले हैं। बिहार की भी सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ही है। बीजेपी को करीब साढ़े उन्तीस प्रतिशत मत मिले हैं। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को कुल पड़े मतों का करीब पचास प्रतिशत मत मिला है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दादरा नगर हवेली, दमन दीव, गोवा, गुजरात इन राज्यों में भी पचास प्रतिशत से ज्यादा मत भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में चले गए हैं। उत्तर प्रदेश की बात करें जहां का चमत्कार किसी को समझ में नहीं आ रहा। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बयालीस प्रतिशत से ज्यादा मत मिले हैं। उत्तर प्रदेश में दूसरे नंबर की पार्टी समाजवादी पार्टी को सिर्फ बाइस और तीसरे नंबर पर मायावती की बसपा को बीस प्रतिशत से भी कम मत मिले हैं। कांग्रेस का मत प्रतिशत उत्तर प्रदेश में दस प्रतिशत के भी नीचे चला गया है। अब लोगों के लिए ये रहस्य है कि आखिर बुरी तरह से जातियों में बंटे उत्तर प्रदेश में ये चमत्कार नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने किया कैसे। मेरा विश्लेषण ये कहता है कि पिछले तीन दशकों से जिस तरह से उत्तर प्रदेश का मान मर्दन राष्ट्रीय राजनीति में हुआ। उसी यूपी के सबसे बड़े राज्य और बुद्धि के आधार पर अपनी महानता के बोध से ग्रसित होने का नरेंद्र मोदी ने हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। नरेंद्र मोदी ये बताने में और अमित शाह अपनी कार्यकुशलता से उसे लागू करने में कामयाब रहे कि उत्तर प्रदेश जैसा ऊर्जा, बुद्धिमत्ता और ताकत किसी में नहीं है। लेकिन, घटिया नेतृत्व ने महान उत्तर प्रदेश को बेइज्जत कराया है। और उस पर ये भी कि मुलायम, मायावती यूपी को नहीं खुद को महान बताने में जुटे रहे। और सोनिया, राहुल गांधी देश में भले सबसे ताकतवर रहे लेकिन, उत्तर प्रदेश के लोग देश में सबसे कमजोर हो गए। ये बात नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के लोगों के दिमाग में अच्छे से भर दी। इस कदर कि उत्तर प्रदेश में यादव परिवार यानी मुलायम सिंह यादव, बहू, भतीजे के अलावा और गांधी परिवार यानी सोनिया और राहुल गांधी के अलावा या तो भारतीय जनता पार्टी जीती है और या तो दो सीटें भारतीय जनता पार्टी के साथ वाले अपना दल को। उसमें भी मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव बीस हजार से भी कम मतों से जीती हैं। जबकि, भारतीय जनता पार्टी के इकहत्तर में से उनसठ सांसदों की जीत का अंतर एक लाख से ज्यादा मतों का है। नरेंद्र मोदी ने जो कुछ पूरे देश में किया उसको उत्तर प्रदेश में सलीके से लागू करने के लिए अमित शाह की भी तारीफ होनी चाहिए कि अमित शाह ने नरेंद्र मोदी के पैदा किए गुस्से का उन्माद अपने प्रबंधन से मतों में ऐसे बदला कि जातियों में जकड़ी उत्तर प्रदेश में धर्म और जाति की राजनीति का शीर्षासन हो गया।
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सोमवार, 19 मई 2014
ढेर सारी जीतों को पिरोकर नरेंद्र मोदी ने भारत जीता है
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