बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

खतरे की नई बानगी


गत शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कड़ा बयान जारी किया कि पाकिस्तान प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मौलाना अजहर को सार्वजनिक रैली में भारत के खिलाफ जहर उगलने की अनुमति दे रहा है। इस्लामाबाद को याद दिलाया गया कि जैश-ए-मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र और भारत, अमेरिका समेत कई देशों ने प्रतिबंधित कर रखा है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि खुद पाकिस्तान ने भी उस पर प्रतिबंध लगा रखा है। यह चेतावनी ऐसे समय में दी गई है जब हर तरफ से घिरी नवाज शरीफ सरकार पाकिस्तान के भीतर मौजूद आतंकी समूहों को सेना और वायु शक्ति की मदद से खत्म करने का अंतिम निर्णय ले चुकी है। पिछले एक माह में पाकिस्तान तालिबान द्वारा हमले की घटनाओं में तीव्र बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके निशाने पर पाकिस्तान सेना के अधिकारी और अन्य वर्दीधारी लोग हैं।


खतरनाक इस्लामिक दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रति प्रमुख राजनीतिक दलों के नरम रुख व नीतियों से पाकिस्तान का आम जनमानस निराश है। 11 सितंबर की घटना के बाद इस विचारधारा का कुप्रभाव पाकिस्तान के आंतरिक हिस्सों और उसके समाज पर अब भलीभांति दिखने लगा है। एक आकलन के मुताबिक पिछले 12 वषरें में पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथियों और अन्य आतंकी संगठनों के हाथों तकरीबन 50,000 वर्दीधारी और आम लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। बढ़ती निराशा के बीच पाकिस्तान के तमाम नागरिकों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं कि क्या सरकार ने पाकिस्तान तालिबान और उसकी अन्य सहयोगी ताकतों से लड़ने की इच्छाशक्ति और प्रतिरोध की क्षमता खो दी है। इस सबको देखते हुए पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने एक सार्वजनिक बयान जारी करके देशवासियों को भरोसा दिलाया है कि घरेलू आतंकवादी समूहों से लड़ने के लिए सेना के पास पर्याप्त क्षमता और संसाधन हैं और पिछले सप्ताह सेना की कार्रवाई इस बात का प्रमाण है। शनिवार यानी 22 फरवरी को पाक सेना ने पश्चिमोत्तार इलाके में आतंकवादी ट्रेनिंग कैंपों पर हेलीकॉप्टर से गोलीबारी की, जिनमें तकरीबन नौ संदिग्धों के मारे जाने की जानकारी है। इस तरह के आपरेशन एक लंबे अभियान की शुरुआत हैं, जिसके साथ-साथ तालिबान के साथ शांति प्रस्तावों पर बातचीत की राजनीतिक प्रक्रिया के भी संकेत दिए जा रहे हैं। पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान जिस तरह आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में दोहरी रणनीति पर चलता नजर आ रहा है उस पर ध्यान देने की जरूरत है। एक तरफ जहां पाकिस्तान सेना दुश्मन आतंकी समूहों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की तैयारी कर रही है, जिसमें वायुसेना का इस्तेमाल भी शामिल है वहीं दूसरी ओर भारत और अफगानिस्तान को निशाना बनाने वाले ऐसे ही संगठनों को लगातार रणनीतिक समर्थन दिया जा रहा है।

मुजफ्फराबाद में अजहर की सार्वजनिक रैली ऐसा ही एक मामला है। पाकिस्तान द्वारा अपनाई जाने वाली इस तरह की विरोधाभासी नीति में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी ही देखने को मिल रही है। जैश-ए-मोहम्मद की रैली के परिप्रेक्ष्य को समझने की जरूरत है। भारत जब 26 जनवरी को अपना गणतंत्र दिवस पारंपरिक तरीके से मना रहा था उसी समय पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद इलाके में आयोजित भारत विरोधी रैली में मौलाना मसूद अजहर को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया। भारत के प्रमुख राष्ट्रीय आयोजनों के दिन पाकिस्तान में भारत विरोधी बातों के कहे जाने का एक सिलसिला कायम है। लेकिन प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के नेता मसूद अजहर को महत्व देना एक नई घटना है, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में अधिक कड़वाहट आएगी।

मसूद अजहर और जैश के दूसरे आतंकी जिन रैलियों में कश्मीर, भारत और अमेरिका के विरोध में लोगों को भड़काते हैं उनमें तकरीबन दस-बीस हजार लोग इकट्ठा होते हैं। यहां इकट्ठी भीड़ को कथित काफिरों के खिलाफ जिहाद की शपथ दिलाई जाती है। हालांकि नवाज शरीफ सरकार ऐसे आयोजनों से दूरी रखती है, लेकिन पाकिस्तान के भीतर ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह इन रैलियों का आयोजन किया जाता है उसमें सरकार का हाथ अवश्य रहता है। भले ही इन्हें सक्त्रिय समर्थन नहीं दिया जाता, लेकिन सुविधाओं के रूप में समर्थन तो दिया ही जाता है। रावलपिंडी में सेना मुख्यालय और इस्लामाबाद में एक के बाद एक सरकारों के पिछले तीन दशक के अनुभव बताते हैं कि भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए पाक सरकार द्वारा आतंकी समूहों को संरक्षण देने की स्पष्ट नीति रही है। यह अलग बात है कि सार्वजनिक तौर पर पाक सरकार इन बातों से इन्कार करती रही है। इस संदर्भ में देखें तो लश्कर और जैश का रुख भारत के खिलाफ रहा है, जबकि हक्कानी समूह की गतिविधियां पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर केंद्रित हैं। 11 सितंबर की घटना के बाद इस्लामिक आतंकी संगठनों ने इस क्षेत्र में अपनी अलग स्वायत्ता व्यवस्था कायम कर ली है। यह एक तथ्य है कि आत्मघाती हमलावरों और आतंकवादियों को प्रेरित करने वाली विचारधारा अब पाकिस्तानी फौज बिरादरी में भी घुस चुकी है। इसे पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तसीर की उनके ही बॉडीगार्ड के हाथों की गई हत्या से समझा जा सकता है।

पाकिस्तान तालिबान की कट्टर विचारधारा और दुस्साहस की एक बानगी पिछले पखवाड़े उस समय देखने को मिली जब उसने शांति वार्ता से हटने का फैसला किया। तालिबान विचारधारा के छिपे समर्थन के आधार पर सत्ता में वापसी करने वाले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पंजाब प्रांत में मुख्यमंत्री के पद पर आसीन उनके भाई ने आतंकी समूहों को बहावलपुर जैसी जगहों पर जाने की अनुमति दी, जहां जनवरी में सार्वजनिक तौर पर सामने आने से पहले मसूद अजहर छिपा करता था। यह भी कम परेशान करने वाली बात नहीं है कि पाकिस्तान में दोनों ही पक्षों के उद्देश्य परस्पर असंगत अथवा बेमेल हैं। तालिबान प्रवक्ता शहीदुल्लाह शाहिद के मुताबिक वह चाहते हैं कि जब तालिबान काबुल पर नियंत्रण कर ले तो मुल्ला फजलुल्लाह पाकिस्तान के खलीफा बनें और यह खलीफा अफगानिस्तान के मुल्ला उमर के अधीन काम करें। इस तरह तालिबान ने अपना रुख साफ कर दिया है। धार्मिक गुरु मौलाना अब्दुल अजीज ने लाल मस्जिद प्रकरण पर जनरल मुशर्रफ को चुनौती दी थी, जो मुशर्रफ के अंत की शुरुआत साबित हुई। उनके मुताबिक तालिबान पाकिस्तान में शरीयत कानून लागू किए जाने के पक्ष में है।

इसी तरह मसूद अजहर नवाज शरीफ सरकार द्वारा आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की नीतियों से नाखुश है। अजहर के नेतृत्व वाले जैश-ए-मोहम्मद को विश्वास है कि वह पाकिस्तान और भारत, दोनों को एक साथ चुनौती दे सकता है। भारत में चुनाव के वर्तमान माहौल में दिल्ली में मौजूद सुरक्षा प्रतिष्ठान को इन घटनाओं पर नजर रखनी होगी।

[लेखक सी. उदयभाष्कर,
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं]


कर्म और पूजा

जीवन संग्राम में परमात्मा की कृपा का होना नितांत आवश्यक है। आपके अंतर्मन में प्रभु का स्मरण रहेगा तो जीवन यात्रा निर्विघ्न पूरी होगी। संग परमात्मा रहे, सत्य रहे, संग धर्म रहे, मानवता रहे। अगर ये हमारे संग रहे तो चिंता करने की कोई बात नहीं। जैसे अर्जुन के सद्गुणों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सारथी बनकर आए थे। तभी तो कहते हैं-जहां धर्म है वहां कृष्ण हैं। जहां कृष्ण हैं वहां विजय सुनिश्चित है। प्रभु संग रहते हैं तो कोई हमारा बाल-बांका नहीं कर सकता, परंतु जीवन में ये सद्गुण तभी कायम रह सकते हैं जब हम सजग व सतर्क रहें। अपने हर कर्म को पूजा बना लें। साथ ही, उसका चिंतन करें। उसे अनुभूत करें।

परमात्मा के चिंतन से चिंता स्वयं समाप्त हो जाती है। दुख-चिंता-मुसीबत, इन सबके बादल प्रभु कृपा से जीवन में छट जाते हैं। हमारे प्रारब्धवश, कर्मवश ये बादल बार-बार आते रहते हैं। कई बार बरसते भी हैं, लेकिन हमारे प्रभु यदि एक छाता हाथ में पकड़ा दें, तो दुख रूपी बरसात से काफी हद तक छुटकारा मिलता है। ध्यान रहे, ये संसार दुखालय है। एक दुख हटता नहीं, दूसरा सिर पर मंडराने लगता है। एक परेशानी दूर होती नहीं कि दूसरी सिर उठा लेती है। यह संसार परिवर्तनशील है। यहां कुछ भी स्थिर नहीं है। प्रभु की कृपा हर पल, हर क्षण हमारे ऊपर बनी रहती है। हम उस कृपा को समझें या न समझें।

हमारी संस्कृति युद्ध के चिंतन की नहीं है, यह धर्मानुसार जीवन जीने का चिंतन देने वाली संस्कृति है। कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य का उद्घोष भारतीय संस्कृति और सभ्यता के रक्षार्थ किया था। वह भी युद्ध नहीं चाहते थे, परंतु धर्म के रक्षार्थ उन्हें दुष्टों के दमन के लिए युद्ध में सम्मिलित होना पड़ा। भगवान श्रीराम ने रावण को बहुत समझाया। नहीं माना तो सोने की लंका भी गई। हमारे देश में अवतरित होने वाले हर अवतार के पीछे जन्म लेने वाले महापुरुष के पीछे कोई न कोई सोद्देश्य होता है। यह मानव देह परमात्मा की अनंत कृपा के बाद मिली है। हमें इसे माध्यम बनाते हुए अपने व्यक्तित्व को सर्र्वांगीण बनाकर ध्यान-साधना के जरिये ईश्वर की अनुभूति करनी चाहिए।

[स्वामी हरिचैतन्यपुरी कामां]

न्याय के दोहरे मापदंड



तमिलनाडु सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने का फैसला क्या रेखांकित करता है? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हत्यारों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदले जाने के दूसरे ही दिन तमिलनाडु सरकार ने तीन दिनों के अंदर उन्हें रिहा करने की घोषणा की थी, जिस पर फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। तमिलनाडु सरकार के निर्णय पर कांग्रेस के युवराज की नाराजगी सामने आते ही केंद्र सरकार फौरन हरकत में आ गई। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे न्याय के सभी सिद्धांतों के खिलाफ बताया है। उन्होंने राजीव गांधी की हत्या को देश की आत्मा पर हमला बताते हुए आतंकवाद के नाम पर राजनीति नहीं करने की नसीहत दी है।

इस बात में दो राय नहीं कि राजीव गांधी के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए, उन्हें छोड़ा नहीं जाना चाहिए, किंतु स्वाभाविक प्रश्न है कि वोट बैंक के लिए आतंकवाद से समझौता करने का यह क्या अकेला उदाहरण है? राहुल गांधी तमिलनाडु सरकार के फैसले से स्वाभाविक तौर पर आहत हैं, किंतु 2008 में नलिनी और मुरुगन से मिलने प्रियंका वाड्रा वेल्लोर जेल क्यों गई थीं? क्या यह सच नहीं कि दक्षिण भारत के दौरों में कई बार स्वयं सोनिया गांधी भी राजीव गांधी के हत्यारों को माफ करने की सार्वजनिक इच्छा प्रकट करती आई हैं? क्या 1984 के दंगों के मामले में हत्या के आरोप में उम्रकैद काट रहे एक आरोपी को रिहा करने की सिफारिश दिल्ली की कांग्रेसी सरकार ने नहीं की थी? क्या यह आरोप गलत है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण ही देश की संप्रभुता के प्रतीक संसद पर हमला करने वाले आतंकी अफजल गुरु की फांसी की सजा सालों लटकाए रखी गई?

अभी हाल ही में देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर आतंकवाद के सिलसिले में गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं की यथाशीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने की अपील की थी। क्या यह सच नहीं कि स्वयं प्रधानमंत्री भी इस दिशा में गंभीर हैं? शिंदे ने आतंकवाद के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं की नाजायज गिरफ्तारी नहीं होने देने को सुनिश्चित करने के साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को गलत तरीके से गिरफ्तार ऐसे युवाओं को न केवल तत्काल रिहा करने, बल्कि उन्हें समुचित मुआवजा देने की भी सलाह दी है। क्या इसी लीक पर आंध्र प्रदेश की कांग्रेसी सरकार ने आतंकवाद के सिलसिले में गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं की अदालत से रिहाई होने के बाद उन्हें मुआवजा देने की नई परंपरा प्रारंभ नहीं की है?

आंध्र प्रदेश की कांग्रेसी सरकार ने 18 मई, 2007 को हुए मक्का मस्जिद बम विस्फोट में गिरफ्तार 21 मुस्लिम युवाओं को मुआवजा देने का निर्णय लिया है, जिन्हें पांच साल के कारावास के बाद पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में रिहा किया गया है। एक मजहब विशेष के साथ ही यह हमदर्दी क्यों? मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित, स्वामी असीमानंद पांच वषरें से जेल में बंद हैं। आज तक चार्जशीट में उनका नाम तक नहीं है। उनके साथ न्याय के सिद्धांत लागू क्यों नहीं होते? प्रधानमंत्री बताएं कि दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ में शहीद हुए इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत को कलंकित कर उस मुठभेड़ को फर्जी बताने वाले कांग्रेसी नेता व मंत्री दंडित क्यों नहीं किए गए? गुजरात में मारी गई इशरत जहां आइबी के अनुसार लश्करे तैयबा की आतंकी थी। इसे एफबीआइ की गिरफ्त में आए आतंकी डेविड हेडली ने भी स्वीकारा है। फिर सीबीआइ के हाथों आइबी और गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा करने के पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही है? अभी जर्मन बेकरी धमाके के आरोपी हिमायत बेग को महाराष्ट्र एटीएस की जांच के आधार पर निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे एनआइए बेदाग बता रही है। राजनीतिक लाभ के लिए जांच एजेंसियों के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर सरकार आतंकवाद से कैसे लड़ सकती है? राजीव गांधी के हत्यारों की मौत की सजा उम्रकैद में बदले जाने के खिलाफ सरकार पुनरीक्षण याचिका डालने वाली है, किंतु कोयंबटूर धमाकों के आरोपी अब्दुल नासेर मदनी के मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया? 16 मार्च, 2006 को होली की छुट्टी के दिन केरल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर साठ निरपराधों की हत्या के आरोपित एक आतंकवादी, अब्दुल नासेर मदनी की रिहाई के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव कांग्रेसियों और मा‌र्क्सवादियों ने पारित किया था। पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में 2007 में सत्र न्यायालय ने उक्त आरोपी को दोषमुक्त कर दिया, किंतु उस निर्णय के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील नहीं की गई। स्वयंभू मानवाधिकारी आतंकवाद, हत्या, दुष्कर्म के आरोप में अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को कारावास में बदलने की वकालत करते हैं। वस्तुत: 1983 में सर्वोच्च न्यायालय ने मारे गए लोगों के जीवन से अधिक हत्यारे के जीवन को प्राथमिकता देते हुए फांसी की सजा 'विरल से विरलतम' मामलों में ही देने की बात की थी। न्यायालय के इस दृष्टिकोण का स्वयंभू मानवाधिकारियों ने खूब दोहन किया है।

आधिकारिक स्नोतों के अनुसार राजीव गांधी के हत्यारों समेत देश भर में करीब 300 ऐसे अपराधी हैं जिनकी मौत की सजा लंबित है। यह ठीक है कि भारत एक सभ्य समाज का नेतृत्व करता है और स्वाभाविक तौर पर इस नैसर्गिक विधान को भी मानता है कि जब किसी को जान देने की क्षमता नहीं है तो उसे किसी के प्राण लेने का भी अधिकार नहीं है, किंतु सभ्य समाज को लहूलुहान करने वाले आतंकियों के साथ किसी तरह नरमी नहीं की जानी चाहिए।

कांग्रेस ने राजनीतिक अवसरवाद के लिए देश की सुरक्षा से कई बार समझौते किए और उसे उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। पंजाब में भाजपा-अकाली दल की एकजुटता तोड़ने के लिए इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले को राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया, जिसकी परिणति ऑपरेशन ब्लूस्टार और स्वयं इंदिरा गांधी की हत्या में हुई। राजीव गांधी की बर्बर हत्या के लिए भी लिट्टे के साथ तत्कालीन सत्ता अधिष्ठान की अदूरदर्शिता जिम्मेदार है। क्षुद्र राजनीतिक लाभों के लिए जब इस तरह के दोहरे मापदंड अपनाए जाते हैं तो उसका खामियाजा सभ्य समाज को ही भुगतना होता है। आज नक्सली हिंसा से देश के ढाई सौ जिले त्रस्त हैं तो इस्लामी आतंक से कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग खौफजदा हैं। आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, इसलिए मजहब के आधार पर किसी आतंकी को रिहा करने की अपील देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है।

राजीव गांधी के हत्यारे देशघाती हैं। देशघातियों के साथ उदारता बरतना दानवाधिकार की वकालत करना है। वस्तुत: आतंकवाद के खिलाफ जंग में मानवाधिकार का मुद्दा गौण हो जाता है। हमें सभ्य समाज के मानवाधिकारों की चिंता करनी चाहिए। आतंकवादी गतिविधियों से सामाजिक सौहार्द तो भंग होता ही है, यह हमारे आर्थिक ढांचे को भी पंगु करता है। आतंकवादी मानवता के दुश्मन हैं और मानवीय मूल्यों पर उनकी कोई आस्था नहीं होती। यदि हमें सभ्य समाज की रक्षा करनी है तो आतंकी के मानवाधिकार की अवसरवादी चिंता त्यागनी होगी।

[लेखक बलबीर पुंज, राच्यसभा के सदस्य हैं]

संसद में शरारती मशीन


राजीव सचान
संसद में शरारती मशीन
यह देखना-सुनना सुखद और आश्चर्यजनक था कि 15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन पक्ष-विपक्ष के सदस्यों ने एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे काढ़े। करीब-करीब सभी ने माना कि इस लोकसभा में वक्त की बर्बादी के साथ तमाम ऐसे काम हुए जिनसे सदन की छवि गिरी और लोगों के बीच अच्छा संदेश नहीं गया। इसके साथ ही यह कहकर संतोष भी जताया गया कि इसी लोकसभा ने राष्ट्रीय महत्व के कई विधेयक भी पारित किए। उदाहरण के तौर पर लोकपाल बिल, खाद्य सुरक्षा बिल, भूमि अधिग्रहण बिल का उल्लेख किया गया। नि:संदेह ये विधेयक उल्लेखनीय कहे जाएंगे, लेकिन यह हैरत की बात है कि किसी ने संकेत रूप में भी लोकसभा की कार्यवाही का प्रसारण रोके जाने की घटना का जिक्त्र नहीं किया। ऐसा तब हुआ जब यह बिल्कुल साफ है कि इस प्रसारण बाधा ने संसद की साख पर बट्टा लगाया। प्रसारण बाधित होने के दिन तो खूब हल्ला-गुल्ला मचा और उसके अगले दिन भी नाराजगी के कुछ स्वर सुनाई दिए, लेकिन इसके बाद ऐसा जाहिर किया गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। यह हास्यास्पद ही नहीं, बल्कि चिंताजनक भी है कि सभी इससे सहमत-संतुष्ट नजर आ रहे हैं कि महज तकनीकी खामी से उस वक्त लोकसभा की कार्यवाही का प्रसारण नहीं हो सका जब सदन में तेलंगाना विधेयक पारित किया गया। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि देश को अंधेरे में रखकर एक नए राज्य के गठन का विधेयक पारित किया जाए?
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ऐसा जानबूझकर किया गया। शायद इसीलिए ताकि अगर स्प्रे छिड़कने या माइक तोड़कर उसे चाकू की तरह लहराने की हरकत फिर से हो तो उसे देश देखने से बच सके। प्रसारण रोके जाने का संदेह इससे भी होता है कि जब कुछ सांसदों ने इस पर आपत्तिजताई तो सत्तापक्ष के सांसदों ने कहा कि आप व्यवस्था पर सवाल नहीं उठा सकते। शाम तक यह बताया जाने लगा कि दरअसल तकनीकी खामी की वजह से प्रसारण बाधित हो गया था। इस कथित कारण के उल्लेख से संदेह का निवारण इसलिए नहीं होता, क्योंकि प्रसारण ठीक उसी वक्त बंद हुआ जब सुशील कुमार शिंदे तेलंगाना विधेयक पर चर्चा के लिए अपनी सीट से खड़े ही हुए थे। अगर एक क्षण के लिए इसे दुर्योग मान लें तो भी यह समझना कठिन है कि लोकसभा टीवी की स्क्त्रीन पर 'संसद की कार्यवाही स्थगित' लिखकर क्यों आया? इसके बाद यह संदेश बदल कर 'प्रसारण थोड़ी देर में' क्यों हो गया? कोई भी उपकरण अथवा मशीन इतनी शरारती अथवा समझदार नहीं हो सकती कि स्वत: प्रसारण भी बाधित कर दे और दर्शकों को गुमराह करने वाला संदेश भी प्रसारित कर दे। जैसी परिस्थितियों में लोकसभा का प्रसारण नहीं हो सका अथवा नहीं होने दिया गया उन्हें देखते हुए कोई भी इस पर यकीन करने वाला नहीं है कि यह किसी मशीन के यकायक काम न करने का दुष्परिणाम रहा।
अच्छा होता कि उन कारणों की तह तक जाया जाता जिनके चलते लोग अंधेरे में रहे। दुर्भाग्य से ऐसा न होने के ही आसार हैं। इस संदर्भ में इस तर्क की आड़ ली जा रही है कि व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। लोकतंत्र में ऐसे तकरें के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। लोकतंत्र में जिस किसी के आचरण को लेकर सवाल उठते हों उनके जवाब मिलने ही चाहिए। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र है जब तक किसी को भी जायज सवालों के दायरे से बाहर रहने की सुविधा न मिले। जिस तरह इस सवाल का जवाब मिलने के आसार कम हैं कि लोकसभा का प्रसारण ठीक-ठीक किन कारणों से रुका वैसे ही अभी तक इस सवाल का जवाब भी आज तक नहीं मिल सका है कि दिसंबर 2011 में राच्यसभा रात 12 बजे तक लोकपाल विधेयक पर निरर्थक चर्चा क्यों करती रही? तब पूरा देश टकटकी लगाए राच्यसभा की कार्यवाही देख रहा था, क्योंकि लोकपाल विधेयक पारित होने की उम्मीद थी। किन्हीं अज्ञात कारणों से बहस थी कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। आखिर जब रात के 12 बज गए और इसी के साथ सदन की अवधि खत्म हो गई तो एक सांसद ने पूछ ही लिया-महोदय अब क्या होगा? जवाब मिला-होना क्या है, अब आप लोग घर जाइए। यह जवाब जनता के मुंह पर किसी तमाचे से कम नहीं था।
संसद से जुड़ा एक और प्रश्न भी अभी तक अनुत्तारित है। यह वोट-नोट अथवा नोट-वोट कांड से संबंधित है। मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल में विश्वास मत प्रस्ताव के समय भरे सदन में नोटों के बंडल लहराए गए थे, लेकिन यह आज तक पता नहीं चल सका कि ये नोट किसके थे? ऐसा तब हुआ जब प्रधानमंत्री के साथ-साथ तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने भी इस मामले की तह तक जाने का भरोसा दिलाया था। क्या यह अजीब और अविश्वसनीय नहीं कि जिस मामले की गहन जांच का भरोसा खुद प्रधानमंत्री ने दिया हो वह अभी तक पहेली बना हुआ है? अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल नहीं दिया होता तो शायद आधी-अधूरी जांच करके ही कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई होती। लोकसभा का प्रसारण बाधित होने के मामले में सरकारी पक्ष के पास एक और तर्क यह है कि राजग सरकार के समय भी तब प्रसारण रोक दिया गया था जब गुजरात दंगों को लेकर सदन में निंदा प्रस्ताव आया था। यह तर्क नहीं कुतर्क है। राजनीतिक परंपराएं और मर्यादाएं ऐसे ही कुतकरें के कारण ध्वस्त होती जा रही हैं। अतीत में हुए किसी तरह के गलत कायरें को अन्य राजनीतिक दल न केवल नजीर की तरह लेते हैं, बल्कि उनके जरिये अपना बचाव भी करते हैं। पहले कांग्रेस ने कुछ गलत किया था तो उसके आधार पर भाजपा अपने गलत को सही बताती है। इसी तरह भाजपा के गलत कामों की आड़ लेकर कांग्रेस खुद को सही साबित करती है। अगर लोकसभा की कार्यवाही का प्रसारण रुकने का जवाब नहीं मिला तो आगे फिर ऐसा हो सकता है।
[लेखक राजीव सचान, दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं]

धर्म के लक्षण

धर्म के लक्षण
जो मनुष्य धार्मिक है या धर्मपथ पर है, उसमें क्या-क्या लक्षण होंगे? इस सवाल का जवाब एक संस्कृत श्लोक में आए शब्दों में निहित है। इन शब्दों के अर्थो में ही धर्म की वास्तविक परिभाषा निहित है। इस क्रम में पहला शब्द 'धृति' है। इस शब्द के कई अर्थ हैं, लेकिन इसका प्रमुख अर्थ है धैर्य। मनुष्य के लिए किसी भी अवस्था में विचलित होना उचित नहीं है। विपत्ति के समय सबसे बड़ी योग्यता है-धैर्य। इसके बाद-क्षमा। क्षमा क्या है? किसी के प्रति प्रतिशोधमूलक मनोभाव न रखना ही क्षमा है। अगर मैं धार्मिक हूं तो मेरे लिए क्षमा करना ही उचित होगा।
'दम' शब्द का अर्थ है आत्म-शासन। संस्कृत शब्द 'शम' और 'दम' लगभग समपर्यायवाची हैं। 'दमन' हुआ स्वयं को शासित करना और शमन हुआ दूसरों पर शासन करना। धार्मिक व्यक्ति को अवश्य ही 'दमन' मनोभाव का होना चाहिए। इसके बाद हुआ-अस्तेय। यम-नियम में 'अस्तेय' शब्द शामिल है। अस्तेय शब्द का अर्थ है-चोरी नहीं करना। चोरी दो प्रकार की है-बाहर की चोरी और भीतर की चोरी। भीतर की चोरी से आशय मन ही मन चोरी करने का भाव लाने से है। इसलिए 'अस्तेय' का अर्थ है-किसी प्रकार की चोरी न करना। 'शौचम् का अर्थ है-शुद्ध रहना। असल में शौच का एक आशय है-मन को शुद्ध रखना। मन को स्वच्छ रखने का क्या उपाय है? प्रथम और एकमात्र उपाय सत्कर्मो में मन को व्यस्त करना है। इंद्रियनिग्रह के द्वारा क्या होता है? इंद्रियनिग्रह कर मनुष्य किसी कार्य में पूरे मनोयोग से अपनी ऊर्जा को केंद्रित कर सकता है। 'धी' का अर्थ है मेधा, बुद्धि। किसी ने हजारों-हजार किताबें पढ़ी हैं, परंतु वह सभी को याद नही रख सकेगा। अधिकांश को भूल जाएगा, यह स्वाभाविक है। मनुष्य की स्मृति अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकती है। साधना के द्वारा मनुष्य को इसे जगाना पड़ता है। शब्द का वास्तविक अर्थ है धुव्रास्मृति। विद्या यानी जो ज्ञान मनुष्य को परमार्थ की ओर ले जाता है उसे ही विद्या कहते हैं। जो ज्ञान मनुष्य को अकल्याणकारी कार्र्यों को करने के लिए प्रेरित करता है उसे कहा जाता है-'अविद्या'। 'सत्यम्' यानी लोगों के हित की भावना लेकर मनुष्य जो भी सोचेगा या बोलेगा वही सत्य है। इस क्रम में धर्म का अंतिम लक्षण है अक्रोध यानी क्रोध न करना।
[श्रीश्री आनंदमूर्ति]

मीडिया से पैदा हुयी पार्टी का मीडिया में बने रहना जरूरी भी है

अंबरीश कुमार
 जन लोकपाल बिल न पेश हो पाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद  केजरीवाल का इस्तीफा लोकसभा चुनाव के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। इसका राजनैतिक संदेश बहुत साफ़ है और अरविंद केजरीवाल साफ़ सन्देश देने में माहिर हैं। केजरीवाल को राजनैतिक दांव में फँसाने वाली कांग्रेस खुद इस खेल में फँस गयी। केजरीवाल ने पचास से कम दिन में वह सब कर दिया जिसका वे राजनैतिक संदेश देना चाहते थे और विदा भी हुये तो शहीद के अंदाज में और कांग्रेस भाजपा को एक दिखा कर। यह सब तकनीकी सवाल है कि जन लोकपाल बिल पेश होने के मुद्दे पर वोटिंग हुयी उसे पास कराने को लेकर नहीं। इसका सन्देश तो यही गया कि कांग्रेस भाजपा ने मिलकर भ्रष्चार के खिलाफ जन लोकपाल को रोका। दिल्ली में बुरी तरह पिटी कांग्रेस के लिये यह और बड़ा झटका है। अब कई मोर्चों पर कांग्रेस घिर गयी है। कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन दिया था यह सोच कर कि आप पार्टी का हमलावर तेवर कुछ कुंद पड़ेगा और सरकार में फँसने की वजह से लोकसभा चुनाव में उनकी हिस्सेदारी कुछ कम होगी। कांग्रेस का समर्थन होने की वजह से आप नैतिक रूप से भी कांग्रेस पर बहुत हमलावर नहीं होगी। पर केजरीवाल ने खुद कम अपने सहयोगियों से कांग्रेस पर हर तरह का हमला करवाया और आप लगातार मीडिया में बनी रही।
इस पार्टी का उदय मीडिया से हुआ है और मीडिया में बना रहना इसके लिये बहुत जरूरी भी है। मीडिया का ही असर है कि चेन्नई, कोलकाता से लेकर अमदाबाद और हैदराबाद तक इसकी जड़े मजबूत हो चुकी हैं और मध्य वर्ग में इस पार्टी के प्रति बहुत लगाव भी है क्योकि इसने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया वह भी दिल्ली में। यह काम तो मोदी भी नहीं कर पाये इसलिये धर्म निरपेक्ष और लोकतान्त्रिक ताकतों के लिये आप उम्मीद की किरण बनकर उभरी है जिसमे नौजवानों का हरावल दस्ता आगे है। यूँ ही नहीं जन आन्दोलनों से लेकर खांटी समाजवादी और गाँधीवादी इस प्रयोग के मुरीद हो गये।
ध्यान से देखें तो डॉक्टर से लेकर प्रोफ़ेसर तक इस पार्टी से लोकसभा टिकट पाने के लिये घंटो लाइन में खड़े होकर अपने पोते के उम्र के बराबर वालों को साक्षात्कार देकर बमबम हो जा रहे हैं। जो लोग कल तक नारा लगाते थे ‘राजनीति तो धोखा है,धक्का मारो मौका है’, वे भी टिकट की कतार में है। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय यानी एनएपीएम की मेधा पाटकर लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं तो उनके सहयोगी मधुरेश आप की सर्च कमेटी में उम्मीदवार तलाशने में जुटे हैं और बाद में विधान सभा का चुनाव भी लड़ेंगे। यह बदलती हुयी राजनीति की बानगी है जिसकी शुरुआत एक एनजीओ से हुयी थी।
वाम दल एक साथ मिलकर जो नहीं कर पाए वह आप ने किया है जिसमें हर तरह की रणनीति भी शामिल है। केजरीवाल को लोकसभा चुनाव से पहले सरकार से मुक्त होना था यह सब जानते थे पर सिर्फ कांग्रेस नहीं जानती थी। यह हैरानी की बात है। केजरीवाल दिल्ली की 28 सीट पर सिमट कर रहने वाले नहीं थे क्योंकि हवा तो पूरे देश में बह रही थी। इसलिये वे सभी फैसले लिये जिसका वादा किया था और मुकेश अम्बानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर सभी को चुनौती दे दी। इनका क्या होगा इससे उन्हें कोई लेना-देना भी नहीं था। उन्हें तो सन्देश देना था कि वे अंबानी को भी घेर सकते हैं और यही सन्देश गया भी। अंत में जन लोकपाल के जरिए भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को को केजरीवाल ने निर्णायक मोड़ पर भी पहुँचा दिया। लोकसभा चुनाव सामने है और केजरीवाल अब देशभर में निकलेंगे। दिल्ली के खेल में कांग्रेस हारी है पर देश की राजनीति में उभरते नरेंद्र मोदी की अब बारी है और आप ने भाजपा के दो तीन फीसद वोट भी छीन लिये तो फिर मोदी को अगली बारी का इन्तजार करना पड़ सकता है।

मोदी पर हो रहे करोड़ो खर्च , चुनाव बाद जनता से होगी वसुली

2014-02-15 08:15 PM को रवि नाईक उवाच पर प्रकाशित

करोडो  अरबो रूपये खर्च कर मोदी  आम चुनाव में जा रहे है चुनाव बाद इस बहुत भरी रकम कि भरपाई वो कहा से करेंगे कही  उनके द्वारा खुद पर किये जा रहे इस प्रकार के खर्च कि भरपाई में देश कि आम जनता न पीस जाये इस समय यह सबसे बड़ी आशंका है । नरेंद्र मोदी को  पिछले कई वर्षो से प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए भाजपा ने पानी कि तरह पैसा  बहाया हे मोदी कि इमेज चमकाने के लिए बाकायदा  हिंदुस्तान और विदेशो में   पि आर एजेंसियो से  बड़े बड़े कांट्रेक्ट किये गए है ताकि देश विदेश में मोदी कि चमक  बन सके । 

इसी प्रकार चाहे मोदी कि चाय पार्टी हो या उनकी रैलीया सब के ऊपर  लाखो करोडो रूपये पानी कि तरह बहाये जा रहे है और ये सिलसिला पिछले कई वर्षो से अनवरत चल रहा है | 

बताया  जाता है कि जिस स्थान पर मोदी कि रैली निर्धारित होती है वहा  पर करीब दो माह पूर्व से ही इसकी तैयारिया शुरु हो जाती है , उस पुरे क्षेत्र  में  रैली के पूर्व ही लाखो रूपये  बैनर पोस्टर  विज्ञापन  पर खर्च कर दिया जाता है |  भीड़ इकठ्ठी करने के लिए भी ढेरो वाहनो यहाँ तक कि रेल गाडियो को भी बुक किया जाता है बड़े बड़े एल सी डी  स्क्रीन और मिडिया मेंजेंट पर भी भारी रकम खर्च कि जाती है , जिससे  कि चंद हजार लोगो कि भीड़ को लाखो कि भीड़ के रूप में प्रचारित किया जाता है । 

मोदी सोशल मिडिया पर भी अपनी छवि सुधरने के लिए बड़ी भारी रकम खर्च रहे है ,ताकि नई पीडी उनकी धाक जमी रहे । 
पि एम् इन वेटिंग  नरेंद्र मोदी खुद भी पुरे ताम झाम के साथ हेलीकाप्टर से दौरा करते है , मोदी कि एक -एक रैली पर भाजपा ने कई -कई करोड़ रूपये खर्च किये है ,ऐसे  ही जबरजस्त खर्च उनकी चाय पार्टी और अन्य आयोजनो में भी किया जा रहा है । 

इस भारी तामझाम के बिच यह सवाल उठना लाज़मी है कि  आखिर यह रुपया कहा से आरहा है ?
कौन खर्च कर रहा है ?

और क्यों खर्च कर रहा है ?इससे  किन लोगो को फायदा हों रहा हे ? या भविष्य में  फायदा मिलने कि सम्भावना है ? और क्या इस प्रकार हो रहे बेहिसाब  खर्च कि वसूली चुनाव बाद आम जनता के ऊपर टेक्स या अन्य प्रकार से कि जायेगी ?इस प्रकार कि चर्चा अब आम लोगो में होने लगी है ,लोग आपस में इस विषय पर  बहस करते कही भी नजर  आते है । ये  ऐसे सवाल  है जिसका जवाब भारतीय जनता पार्टी को देना ही होगा , उसे  आज नहीं तो कल देश कि जनता को ये बताना ही पड़ेगा कि कैसे  इवेंट मेनेजमेंट कम्पनियो , पब्लिक  रिलेशन  एजेंसियो ,मिडिया मेनेजमेंट पर लाखो करोड़ रुपय खर्च किये जा रहे है  इसके स्रोतो कि जानकारी भी जनता  बताना होगी | 

यहाँ सवाल यह भी उठता है कि  मोदी कि  खुद कि मौलिक प्रतिभा कहा है जबकि उनका हर कदम प्रायोजित नजर आता है उनके द्वारा हायर किये हुवे इवेंट मैनजरों के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशो को ही वो  पालन करते  बनी बनाए स्क्रिप्ट पर मोदी  चल रहे है इस तरीके से  अपनी  इमेज को  बनाने के लिए  पिछले कई वर्षो में उन्होंने करोडो अरबो रूपये खर्च किया जा चूका है । एक सवाल यह भी पूछा जारहा हे कि मोदी के पीछे गुजरती उद्योग पतियो कि लाबी काम कर रही  है यदि इस तथ्य  में जरा भी सच्चाई है तो आम चुनाव के बाद निश्चित तौर  पर देश कि जनता को इसका भर उठाना ही पड़ेगा । देश के आम चुनाव को व्यापारी के दृष्टिकोण से  लड़ना देश कि जनता के लिए घातक सिध्द होगा क्यों कि जो लोग आज उनके लिए धन खर्च कर रहे कल वो उसकी वसूली भी करेंगे । 
पुष्पेंद्र आल्बे

लेखक/रचनाकार: पुष्पेंद्र आल्बे

मोबाइल: 098269 10022 पढ़ाई में अव्वल, खूब कीर्तिमान बनाएं, तोड़े, रसायन शास्त्र से स्नातकोत्तर भी किया, लेकिन युवावस्था में कदम रखने के साथ ही लग गया कि ग्यारह से पांच की सरकारी नौकरी करना अपने बस की बात नहीं। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के बचपन से ही प्रषंसक, सो क्रिकेट के ऊपर लिखना हमेषा ही दिल को भाया। क्रिकेट के साथ ही बॉलीवुड के क्लासिक दिग्गजों-संजीव कुमार, गुलजार साहब जैसो की फिल्में देख-देखकर इसकी भी समझ आ गई। दैनिक जागरण से टेªनी रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया, फिर गृहनगर छोड़कर मप्र की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर में किस्मत आजमाने आ गए। प्रिंट मीडिया से अलग हटकर कुछ करने की चाह हुई, तो खबर इंडिया की नींव रखी। कुछ ही समय में खबर इंडिया इंटरनेट बिरादरी की कुछेक चुनिंदा पोर्टलों में शामिल हो गई है....लेकिन यह तो बस शुरूआत भर है....अभी आगे बहूत दूर जाना है....

आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को फँसाकर हिन्दुओं और मुसलमानों में दूरी पैदा करना चाहती हैं सरकारें-रामकृष्ण


निर्दोष शकील और बशीर की रिहाई के लिये सीतापुर में रिहाई मंच ने किया जनसम्मेलन
सीतापुर/लखनऊ, 15 फरवरी 2014। आतंकवाद के नाम पर पकड़े गये बेगुनाह शकील और बशीर हसन की रिहाई के लिये गुरूवार को आयोजित जन सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि बशीर, शकील और उनका पूरा परिवार यूपी एटीएस और दिल्ली स्पेशल सेल की आपराधिक साजिश का शिकार है, जिसने इस हँसते-खेलते परिवार को तबाह कर दिया है। उनके परिवार द्वारा कई बार सपा सरकार के नेताओं राजेंद्र चौधरी और अबु आसिम आजमी से फरियाद करने के बावजूद उन्हें सरकार से सिर्फ आश्वासन ही मिला। यहाँ तक कि उनकी गिरफ्तारी पर उठने वाले सवालों की जाँच के लिये सरकार ने कोई आयोग तक गठित करना जरूरी नहीं समझा और ना ही उन ज्ञापनों का ही कोई जवाब आज तक इस परिवार को सरकार की तरफ से मिला जिसे उन्होंने कई बार सरकार और मुख्यमंत्री को भेजा। जिससे साबित होता है कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई का चुनावी वादा सिर्फ एक धोखा था।
सीतापुर के बिसवां स्थित शकील के पैत्रिक गांव कुतुबपुर में आयोजित जन सम्मेलन में मोहम्मद शुऐब ने कहा कि बशीर और शकील पर आरोप है कि उनके घर यासीन भटकल आया था जिसका न तो कोई प्रमाण है और ना ही कोई गवाह। आज तक पुलिस यह भी नहीं बता पायी है कि उनके उपर आरोप क्या है और क्या किसी भी अनजान व्यक्ति के किसी के घर का पता पूछते हुये चले जाने से कोई कैसे आतंकवादी साबित हो जाता है। लेकिन बावजूद इसके वे पिछले दो सालों से जेल में बन्द हैं। जबकि असीमानंद द्वारा कई बार संघ परिवार के नेताओं मोहन भागवतइंद्रेश कुमार और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की आतंकी घटनाओं में संल्प्तिता उजागर करने के बावजूद उन्हें आज तक पूछताछ के लिये भी पुलिस और जाँच एजेंसियों ने नहीं बुलाया। जिससे साबित होता है कि आतंकवाद के नाम पर सिर्फ बेगुनाह मुसलामानों को फँसाने और असली आतंकियों को खुली छूट देने के नीतिगत सिद्धान्त पर सरकारें काम कर रही हैं। जिसमें प्रदेश सरकार भी शामिल है। इसीलिये यूपी एटीएस ने बशीर और शकील को फँसा कर दिल्ली स्पेशल सेल को दे दिया। जो कि कानूनी तौर पर गलत और राज्य सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण था। लेकिन केंद्र की काँग्रेस सरकार से तमाम मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद इस पर सपा सरकार ने आपत्ति नहीं की। जो साबित करता है कि आतंकवाद के झूठे आरोप में मुसलमानों को फँसाने के सवाल पर काँग्रेस या भाजपा की सरकारों के साथ प्रदेश की सपा सरकार की आम सहमति है।
वरिष्ठ पत्रकार रामकृष्ण ने कहा कि शकील और बशीर जैसे निर्दोष मुसलमानों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फँसा कर सरकारें हिन्दुओं और मुसलमानों में दूरी पैदा करके अपनी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता के संयुक्त आंदोलनों को कमजोर करना चाहती हैं। लेकिन रिहाई मंच दूसरे संगठनों के साथ मिल कर सरकारों के इस नापाक साजिश को नाकाम करने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि अवध की इस धरती के इतिहास से हमें सबक सीखना होगा जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहाँ के हिन्दुओं और मुसलमानों ने बेगम हजरत महल और मौलवी अहमदुल्ला शाह के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज फिर से हमें ऐसी ही तहरीक चला कर साम्प्रदायिक और कॉर्पोरेट परस्त खुफिया एजेंसियों और सरकारों से मोर्चा लेते हुये अपने देश की गंगा-जमुनी विरासत की रक्षा करनी होगी।
मुस्लिम मजलिस के नेता जैद अहमद फारूकी ने कहा कि सपा अपने को मुसलमानों की हिमायती बताती है। लेकिन मुसलमानों के वोट से सपा के कई बार सत्ता में पहुँचने के बावजूद मुसलमानों की स्थिति दयनीय बनी बुनी है। जिसका अंदाजा सिर्फ इसी से लग जाता है कि प्रदेश में कुल दरोगाओं की संख्या 10197 है जिसमें मुसलमानों की कुल संख्या 236 यानि 2:31 प्रतिशत है, कुल 8224 हेड कॉन्सटेबल में सिर्फ 269 मुसलमान हैं, तथा 124245  सिपाहियों में सिर्फ 4430 यानि 4:37 मुसलमान हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर फँसाने की राजनीति मुसलमानों की नयी पीढ़ी के मनोबल को तोड़कर उन्हें दोयम दजे का नागरिक बनाने की है जिसके खिलाफ आवाम को संघर्ष करना होगा।
वरिष्ठ रंगकर्मी आदियोग ने कहा कि साम्प्रदायिक साजिशों के खिलाफ हमें सांस्कृतिक हस्तक्षेप भी करना होगा। आज मीडिया से लेकर सिनेमा तक के माध्यम से मुसलमानों की छवि बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। जिसके खिलाफ हमें अपनी मिली जुली सांस्कृतिक परम्पराओं को आगे बढ़ाना होगा।
भारतीय एकता पार्टी के अध्यक्ष सैयद मोईद अहमद ने कहा कि सपा सरकार ने खालिद मुजाहिद की हत्या करवा कर साबित कर दिया है कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने के बजाए वह उनकी हत्या करवाने पर तुली है, जिसे मुसलमान समझ गया है और आने वाले लोकसभा चुनाव में वह इसका बदला भी लेगा।
सिनेमा ऐक्टिविस्ट शाह आलम ने कहा कि आजादी के बाद से मुसलमानों की संख्या को उच्च सरकारी नौकरियों में लगातार एक साजिश के तहत कम किया गया है और शकील, बशीर या अलीगढ़ से पीएचडी कर रहे गुलजार वानी जैसे पढ़े लिखे नौजवानों को जेलों में डाल कर उस संख्या को समायोजित किया रहा है। इसलिये इन साजिशों के खिलाफ नीतिगत स्तर पर संघर्ष करना होगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता और रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अनिल आजमी ने कहा कि आईबीकी साम्प्रदायिक निगाहें सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मुस्लिम युवकों पर है। क्योंकि मुसलमानों की यह पीढ़ी अपने अधिकारों के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक है। ऐसे में जरूरत है कि इस संघर्ष में यह पीढ़ी खुद सामने आये।
जनसम्मेलन का संचालन रिहाई मंच के नेता लक्ष्मण प्रसाद ने किया। रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव, शाहनवाज आलम और शकील के भाई मौहम्मद इसहाक ने भी सभा को सम्बोधित किया।

सांप्रदायिक शक्तियों से केवल सपा लड़ रही है- मुलायम सिंह

लोकसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में सपा की अहम भूमिका होगी- अखिलेश यादव
मौसम खराब होने के बावजूद रैली में भारी संख्या में पहुँचे लोग
राधे कृष्ण
गोरखपुर, 15 फरवरी। एक कहावत है- आप कुदरत को बदल नहीं सकते हो, लेकिन अगर बुलंद इरादों के साथ आगे बढ़ोगे तो कुदरत आपके पक्ष में जरूर हो सकती है। यह कहावत आज मानबेला के मैदान में सच साबित हुयी। पिछले दो दिनों से मौसम जिस तरह से रंग बदल रहा था उससे समाजवादी पार्टी के नेताओं के चेहरे पर देश बचाओ-देश बनाओ महारैली को लेकर भारी चिंता दिख रही थी। उन्हें लग रहा था कि पता नहीं खराब मौसम की वजह से रैली होगी या नहीं…। लेकिन आज खराब मौसम के बावजूद रैली हुयी और वह पूरी तरह सफल रही।
मौसम खराब होने के बावजूद जिस तरह सपा की रैली में भारी संख्या में लोग पहुँचे थे उससे सपा नेताओं के चेहरे खिले हुये थे। पूरा मानबेला मैदान खचाखच भरा हुआ था। इसी मानबेला के मैदान पर गत 23 जनवरी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली की थी। आज की उससे ज्यादा भीड़ बताई गयी। अपनी रैली में मोदी ने मुलायम सिंह यादव को चुनौती देते हुये कहा था कि उत्तर प्रदेश को गुजरात जैसा बनाने के लिये 56 इंच का सीनाचाहिए। समाजवादी पार्टी की यह सातवीं देश बचाओ-देश बनाओ रैली थी। इससे पहले सपा आजमगढ़, बरेली, झांसी, वाराणसी, गोंडा और सहारनपुर में रैलियाँ कर चुकी है।
मौसम खराब होने की वजह से करीब ढाई घंटे की देरी से रैली में पहुँचे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में सपा और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा के अलावा कोई और दल लड़ाई में नहीं है। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ही सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ रही है। काँग्रेस और भाजपा के बीच मिलीभगत होने का आरोप लगाते हुये श्री यादव ने संसद में हुयी शर्मनाक घटना के लिये दोनों दलों को जिम्मेदार ठहराया।
सपा प्रमुख ने कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। उत्तर प्रदेश में दूसरा कोई और दल लड़ाई में नहीं है। काँग्रेस और बहुजन समाज पार्टी पर निशाना साधते हुये उन्होंने कहा कि सपा के अलावा कोई और दल सांप्रदायिक शक्तियों से नहीं लड़ रहा है। समाजवादी पार्टी ही भाजपा को रोक सकती है।
सपा प्रमुख ने आरोप लगाया कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियों में करोड़ो रूपए खर्च हो रहे हैं। मोदी की रैलियों में लोग ढोकर लाये जाते हैं जबकि सपा की रैलियों में लोग खुद चलकर आते हैं। उन्होंने कहा कि काँग्रेस और भाजपा आपस में मिली हुयी हैं। संसद में हुये शर्मनाक मिर्च कांड के लिये यही दोनों दल जिम्मेदार हैं। इन दोनों पार्टियों ने मिलकर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कीं जिससे यह शर्मनाक घटना हुयी। उन्होंने कहा कि काँग्रेस ने हमेशा बँटवारे की राजनीति की है। आंध्र प्रदेश के लोग बंटवारा नहीं चाहते लेकिन काँग्रेस अपने राजनीतिक लाभ के लिये आंध्र प्रदेश को बाँटने पर तुली हुयी है। सपा ने हमेशा राज्यों के विभाजन का विरोध किया है।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती का नाम लिये बगैर उन्होंने कहा कि कुछ लोग जब देखो तब सपा सरकार की बर्खास्तगी की ही माँग करते रहते हैं क्योंकि इन लोगों का कोई वजूद नहीं बचा है। इन्हें चुप कराने के लिये केन्द्र में सपा की मजबूती जरूरी है क्योंकि केन्द्र यदि कलेक्टर है तो राज्य सरकारें पटवारियों की तरह होती हैं। उन्होंने पूर्वांचल को विशेष मदद दिये जाने की माँग की।
सपा मुखिया ने पार्टी कार्यकर्ताओं का आहवान किया कि केन्द्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये आज से बेहतर मौका कभी नहीं मिलेगा क्योंकि काँग्रेस और भाजपा दोनों को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलेगा और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 80 सीटें हैं। इसमें यदि 50 से अधिक सीट सपा जीतने में कामयाब रही तो सरकार में उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी। तीसरे मोर्चे के संभावित अन्य घटकों के राज्यों में सीटें इतनी कम हैं कि वे यदि सभी जीत लेते हैं तब भी सपा के बराबर नहीं पहुँच सकते।
सपा प्रमुख ने कहा कि तीसरे मोर्चे के संभावित घटक पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु,  महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में प्रभाव रखते हैं। वहाँ वे सभी सीटें जीत लें फिर भी उनके पास सपा से बेहतर मौका नहीं है क्योंकि यहाँ 80 सीटें हैं जबकि अन्य राज्यों में इससे काफी कम। उन्होंने कहा कि नौजवानों के समक्ष सपा को केन्द्र की सत्ता में लाने की चुनौती है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि नौजवान इस चुनौती को अच्छी तरह निभायेंगे।
खराब मौसम की वजह से सपा प्रमुख जल्दी-जल्दी बोले। उन्होंने कहा कि खराब मौसम के बावजूद रैली में लोग बधाई के पात्र हैं। सपा प्रमुख ने काँग्रेस को महँगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया और कहा कि काँग्रेस ने इसके अलावा और कुछ किया ही नहीं। भ्रष्टाचार के कारण ही देश में पर्याप्त मात्रा में चीनी होने के बावजूद विदेश से इसे आयात किया गया। जिसका सीधा प्रभाव गन्ना किसानों पर पड़ा। यूपीए सरकार को देश की जनता महँगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों के लिये याद रखेगी। महँगाई की वजह से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। उसे दो वक्त भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के काम-काज की जमकर तारीफ की और कहा कि समाजवादी पार्टी की नीति किसानों और नौजवानों को कमजोर नहीं करने की है। इसी नीति पर सरकार काम कर रही है। देश में किसानों और मुसलमानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है जबकि यही लोग देश को आगे आगे बढ़ा रहे हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का नाम लिये बिना कहा कि उन्हें बड़ी रैली करने की चुनौती दी गयी थी। हमने जब बड़ी रैलियाँ करके दिखा दीं तो हमें विकास के मुद्दे पर चुनौती दी गयी। सपा सरकार की उपलब्धियों को उनके सामने रखकर उन्हें बता दिया कि हमारी सरकार उनकी सरकार से बहुत अच्छा काम कर रही है। हमारी सरकार ने जनता के हित में बहुत काम किये हैं।
सपा सरकार ने किसानों के लिये नहरों और सरकारी ट्यूबवेलों से सिंचाई मुफ्त कर दी है। किसानों के कर्जे माफ करने के साथ ही यह नियम बना दिया गया है कि किसी भी कीमत पर किसान की जमीन नीलाम नहीं होने दी जायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इंटर पास छात्र-छात्राओं को लैपटॉप देकर उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी का मौका दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद से विकास के बहुत सारे कार्य हुये हैं। वह विकास के माध्यम से जनता का पैसा जनता को लौटा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव देश के लिये बहुत महत्तवपूर्ण है। इसके बाद देश की राजनीति में समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख मुलायम सिंह यादव की अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ने 2012 विधानसभा चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणा पत्र में जनता से जो वायदे किये थे उनमें से ज्यादातर वायदों को पूरा किया जा चुका है।
मुख्यमंत्री कहा कि गोरखपुर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में जानलेवा बीमारी मस्तिष्क ज्वर से हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है। उनकी सरकार इस बीमारी के साथ ही अन्य रोगों पर काबू पाने के लिये काम कर रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सपा सरकार ने जनता को महत्वपूर्ण सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। इस क्षेत्र में 14 संसदीय सीटें हैं जिसमें से केवल तीन सीटें ही सपा के पास हैं। इस क्षेत्र में सपा अपनी सरकार की उपलब्धियाँ गिनाकर अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहती है।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

थर्ड फ्रंट माने “भाजपा भगाओ फ्रंट”

मोदी मुक्त भारत और भाजपा मुक्त भारत बनाने में कारगर हो सकता है तीसरा मोर्चा

अमलेन्दु उपाध्याय
भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस पर हमलावर होते-होते अचानक तीसरे मोर्चे पर हमलावर हो गए हैं। बीते मंगलवार को मोदी ने कहा ‘हर बार चुनावों में क्षेत्रीय दल तीसरे मोर्चे की बात चलाते हैं। पर चुनावों के बाद कांग्रेस के साथ खड़े हो जाते हैं। इस बार भी 11 दल तीसरे मोर्चे की बात कर रहे हैं। इनमें से नौ कांग्रेस के सहयोगी रह चुके हैं। यह थर्ड फ्रंट नहीं, कांग्रेस बचाओ फ्रंट है। अब इन लोगों को सबक सिखाने का समय आ गया है।’
तीसरे मोर्चे पर मोदी का हमला अनायास ही नहीं है, दरअसल यह मोदी की घबराहट का नतीजा है। यूँ तो तीसरा मोर्चा अभी बना भी नहीं है और चुनाव पूर्व बनने के आसार भी नहीं हैं जैसा कि माकपा नेता सीताराम येचपरी भी कह चुके हैं कि लोकसभा चुनावों से पहले कोई (तीसरा) मोर्चा नहीं होगा। ’’1977 से अब तक जब कभी गठबंधन हुआ है, चुनावों के बाद ही हुआ है, वह चाहे राजग हो या संयुक्त मोर्चा।’’ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी कह चुके हैं कि आम चुनावों के बाद ही तीसरा मोर्चा बन सकता है। लेकिन मोदी का इस मोर्चे पर बिलबिलाने के निहितार्थ हैं।
दरअसल अभी तक मोदी और भाजपा स्वयं को कांग्रेस के एकमात्र विकल्प के रूप में पेश कर रहे थे और कांग्रेस भी मोदी को हवा दे रही थी और उसके पीछे दोनों दलों की सोची – समझी रणनीति थी कि देश में द्विध्रुवीय व्यवस्था का माहौल तैयार किया जाए क्योंकि यह तीसरी धारा वाले (जो कभी कांग्रेस की डाल पर जा बैठते हैं और कभी भाजपा की डाल पर) इनसे मुक्ति मिल सके। अरबों रुपया प्रचार पर फूँकने के बाद भी जब मीडिया घरानों ने प्री पोल सर्वे किए तो उनके परिणाम भी यही बता रहे थे कि यह तीसरी धारा वाले बिखरे भले ही हों पर कांग्रेस और भाजपा दोनों का खेल बिगाड़ सकते हैं। अगर 2009 के लोकसभा चुनाव की ही बात की जाए तो इस चुनाव में संप्रग और राजग को मिलाकर भी 48 फीसद से कम वोट मिले थे। वह भी तब जब कोई तीसरा मोर्चा उस चुनाव में न अस्तित्व में था और न मैदान में। पूरा चुनाव भाजपा के लौह पुरूष (अब कागज के पुतले) और उस समय ईमानदारी और विकास के मध्य वर्ग के ब्रांड एंबेसडर मनमोहन सिंह के बीच सिमटा हुआ था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर यही तीसरा फ्रंट 2009 में भी थोड़ा सा दम वाला होता तो नतीजे क्या हो सकते थे।
मोदी की समस्या तीसरे फ्रंट से यह नहीं है कि यह “थर्ड फ्रंट नहीं, कांग्रेस बचाओ फ्रंट” है। अगर यह थर्ड फ्रंट कांग्रेस बचाओ फ्रंट ही होता तो राजग का 24 दलों का भानुमती का पिटारा कैसे बनता। आज वाम मोर्चा और समाजवादी पार्टी को छोड़कर तीसरे फ्रंट के बाकी सभी दल तो एक समय में राजग की पालकी ही ढो रहे थे। तब मोदी और भाजपा को कोई परेशानी नहीं थी।
भाजपा की परेशानी का सबब यह है कि अकेले नीतीश और मुलायम ही अगर एक हो जाएं तो मोदी जी का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा तो यूपी-बिहार में ही बाँध लिया जाएगा, बाकी देश की बात तो छोड़ दीजिए। दूसरी मोदी की समस्या और विकराल है। अडवाणी जी ने तो काफी लंबे समय से बल्कि 2009 से पहले ही अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी वाली रक्तरंजित खाल उतारने का प्रहसन शुरू कर दिया था और अटल जी की तरह उदारता का चोला ओढ़ने का प्रयास प्रारंभ कर दिया था लेकिन यही रक्तरंजित नरभक्षी चोला ही मोदी की यूएसपी है। ऐसे में अगर मई 2014 में राजग (भाजपा) अगर किसी जोड़-तोड़ से सरकार बनाने के नज़दीक पहुँचा भी (जो तमाम कॉरपोरेट घरानों के पम्प करने के बाद भी पहुँचेगा नहीं) तो मोदी के लिए 7 रेसकोर्स के दरवाजे नहीं खुलेंगे। जो मौजूदा समीकरण हैं उसमें तमाम किंतु-परंतु के बाद न तो नीतीश, न मुलायम, न ममता, न नवीन पटनायक, न जगनमोहन और चंद्र बाबू नायडू मोदी के साथ जाएंगे और लेफ्ट फ्रंट के विषय में ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता। गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी और क्षेत्रीय दलों में केवल मायावती और अरविंद केजरीवाल ही मोदी के साथ खड़े हो सकते हैं बाकी कोई नहीं। …और मायावती और केजरीवाल दोनों की कुल मिलाकर इतनी हैसियत बनने वाली नहीं है कि मोदी का राजतिलक करा सकें। हालाँकि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी बहुत शातिराना ढंग से मोदी की मदद कर रही है इसके बावजूद मोदी से दिल्ली बहुत दूर ही रहेगी।
पूरी संभावना इस बात की है कि 2014 में त्रिशंकु संसद् ही बनेगी और अगर कांग्रेस 150 से नीचे रही (ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी) तो भी केंद्र में सरकार मोदी और राजग की नहीं बनेगी और ऐसी स्थिति में वामपंथी दल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसी स्थिति में वामदलों की धुर विरोधी ममता बनर्जी भी किसी हाल में मोदी या भाजपा के साथ नहीं जाएंगी। हाँ, अगर वे सियासी तौर पर आत्महत्या करने का इरादा कर लेंगी तो वाम विरोध में राजग के साथ जा सकती हैं अन्यथा नहीं।
यही स्थिति नीतीश, नवीन पटनायक की होगी। वे भी सियासी आत्महत्या करने से बचेंगे और बड़ी मुश्किल से दोनों के राजग से प्राण छूटे हैं, फिर किसी अंधे कुएं में गिरने से बचेंगे।
नज़र दौड़ाइए तो लोकसभा की 540 में से उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, बंगाल, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा जैसे राज्यों की लगभग 250 सीटों पर तीसरी धारा के दल ही मुख्य लड़ाई में हैं, यहां भाजपा का तो अता-पता ही नहीं है। फिर मोदी जी का मिशन 272 कहां से पूरा हो रहा है ?
उत्तर प्रदेश में भी तमाम किंतु-परंतु के बावजूद असली लड़ाई सपा और बसपा की है, भाजपा यहां प्रयास कर जरूर रही है लेकिन उसका यह प्रयास किसी परिणाम में बदलने वाला नहीं है। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद समाजवादी पार्टी के प्रति अल्पसंख्यकों में बेशक नाराजगी है, लेकिन इस नाराजगी में अल्पसंख्यक यहां अपनी आँखें नहीं फोड़ लेंगे। यह बात भी सामने आ ही गई है कि मुजफ्फरनगर की हिंसा भाजपा द्वारा प्रायोजित थी और सपा सरकार डर-डर कर कदम उठाती रही, जिसके चलते सपा से अल्पसंख्यक नाराज़ हुआ। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह मोदी जी की जै-जैकार करने लगेगा या उन मायावती के लिए पलक पांवड़े बिछा देगा जो मायावती आज तक मुजफ्फऱनगर जाने की जेहमत नहीं उठा सकीं और जिन्होंने खुलेआम कहा था कि उनकी पार्टी को तो मुसलमानों ने हराया है।
बिहार में भी मुख्य लड़ाई जद-यू और राजद की ही होगी। इसीलिए तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट से भी मोदी का तिलमिलाना बेसबब नहीं है। जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आएगा उनकी तिलमिलाहट में इजाफा ही होगा। यह थर्ड फ्रंट भले ही कांग्रेस बचाओ फ्रंट न हो या न हो लेकिन भाजपा भगाओ फ्रंट जरूर है। इसीलिए मोदी जी के निशाने पर यह थर्ड फ्रँट आया है क्योंकि 2014 को “मोदी मुक्त भारत” और “भाजपा मुक्त भारत” बनाने में यह मोर्चा कारगर हो सकता है

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अमलेन्दु उपाध्याय,
लेखक हस्तक्षेप.कॉम के संपादक व राजनीतिक विश्लेषक हैं।

शिवराज व्यापम घोटाले की सिबीआई जाँच से डरते क्यों है ?

2014-02-17 12:34 AM को रवि नाईक उवाच पर प्रकाशित

यदि वे इतने ही ईमानदार है और प्रदेश के नोजवानो का भला चाहते है तो करवाए सीबीआई जांच,  होने दे दूध का दूध पानी का पानी 

खुद की  ईमानदारी का ढोल पीटने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह,अपनी ही नाक के नीचे हुए व्यापम महाघोटाले की जाँच सीबीआई से करने से क्यों डरते है ? आखिर क्या कारण है की बार बार मांग के बावजूद वे सीबीआई जाँच से कतरा रहे है।
 
सच्चाई ये है की 14 जनवरी 2014 को विधानसभा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चोहान ने जब खुद स्वीकार किया है  की, व्यापम घोटाले में  1000 लोगो के फर्जी नियुक्तिया हुई है। तो साफ़ हो गया की मामला कितना गंभीर है। इसका मतलब ये भी निकलता है की, मुख्यमंत्री  शिवराज चोहान को उन 1 हजार लोगो की जानकारी है ,जिनको इस  घोटाले से फायदा हुआ है। क्या मुख्यमंत्री इस घोटाले से जुडी जानकारी परदेश कि जनता से छिपा रहे है , या फिर किसकी बचाने कि कोशीश   कि जा रही है ,तो क्या शिवराज इसलिए सीबीआई जाँच नही करवा रहे है की, उनके भी इसमें फसने की संभावना है ???

इस महाघोटाले की चपेट में करीब 30 लाख युवा आ गये हैं, पुलिस,टायपिंग,संविदा शिक्षक जेसी व्यापम द्वारा ली गयी 52 प्रतियोगी परीक्षाए संदेह के दायरे में आ चुकी है। जिनमे 1 लाख 47 हजार विखाद्यार्थीयो का चयन हो चूका है । प्रदेश सरकार ने बाकायदा इन परिक्षाओ के लिए फ़ीस भी वसूली है। संविदा वर्ग-1,2,3 के  18 लाख परीक्षार्थीयो से  ही 107 करोड़ रूपये राज्य सरकार ने फ़ीस के नाम पर वसूले है ।

 राज्य ओपन बोर्ड के 21 हजार, संसकृत बोर्ड के एक हजार से ज्यादा परीक्षारथी भी जाँच के दायरे आगये है अनुमान  के मुताबिक 2004 से होरहे इस घोटाले की खास बात ये है की इसके द्वारा नकली डॉक्टर भी बन गये है ।पी  एम् टी परीक्षा में  किये फर्जीवाडे से अबतक 980 लोगो को ग़लत तरीके से करोड़ो रूपये लेकर मेडिकल कालेजो में प्रवेश दिया गया। जिसमे से करीब 700 लोग डाक्टरी की डिग्री भी कम्प्लीट कर चुके है। एक एक सीट के लिए करोड़ो रूपये का लेनदेन हुआ है  शिवराज के भयभीत होने क एक कारण यह  भी नजर आता  है की इस फर्जीवाडे में उनके नजदीकी लोगो के अलावा उनकी केबिनेट के एक पूर्व मंत्री, 2 वर्तमान मंत्रीयो सहित कई आईएएस,आईपीएस व्यापम के बड़े अफसर भी शामिल है। इस महा घोटाले में जंहा अयोग्य लोगो का चयन होगया है, बल्कि हजारो करोड़ रुपयों की घुस भी ली गयी है, इससे   य़ह मामला सीबीआई  के साथ साथ आयकर विभाग अन्य विभागो की जाँच का भी बनता है।   यदि इस मामले कि सीबीआई  द्वारा निस्पक्ष जाँच हो जाये तो , शिवराज सरकर को सत्ता से बेदखल  भी होना पद सकत है शायद इस डर  से म. प्र।  के  मुख्यमंत्री सीबीआई  जाँच नहीं करवाना चाहते है । 

पुष्पेंद्र आल्बे

लेखक/रचनाकार: पुष्पेंद्र आल्बे

मोबाइल: 098269 10022 पढ़ाई में अव्वल, खूब कीर्तिमान बनाएं, तोड़े, रसायन शास्त्र से स्नातकोत्तर भी किया, लेकिन युवावस्था में कदम रखने के साथ ही लग गया कि ग्यारह से पांच की सरकारी नौकरी करना अपने बस की बात नहीं। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के बचपन से ही प्रषंसक, सो क्रिकेट के ऊपर लिखना हमेषा ही दिल को भाया। क्रिकेट के साथ ही बॉलीवुड के क्लासिक दिग्गजों-संजीव कुमार, गुलजार साहब जैसो की फिल्में देख-देखकर इसकी भी समझ आ गई। दैनिक जागरण से टेªनी रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया, फिर गृहनगर छोड़कर मप्र की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर में किस्मत आजमाने आ गए। प्रिंट मीडिया से अलग हटकर कुछ करने की चाह हुई, तो खबर इंडिया की नींव रखी। कुछ ही समय में खबर इंडिया इंटरनेट बिरादरी की कुछेक चुनिंदा पोर्टलों में शामिल हो गई है....लेकिन यह तो बस शुरूआत भर है....अभी आगे बहूत दूर जाना है....